वाकया किस साल का है मुझे ठीक से याद नहीं! कुछ-कुछ याद कर पा रहा हूं, शायद उस समय मैं छठवीं क्लास में था। अप्रैल या मई का महीना था, आईपीएल के मुकाबले खेले जा रहे थे। चूंकि उस समय खेल समाचारों को जानने का या यूँ कहें कि- गाँव में समाचार जानने का एकमात्र साधन रेडियो हुआ करता था, इसलिए समाचार तो नहीं लेकिन खेल समाचार जानने के लिए मैं भी रेडियो पर ही निर्भर रहता था।
उस समय खेल प्रेमी होना बड़ी अच्छी बात थी लेकिन- हरेक खेल प्रेमी के साथ दिक्कत यह होती थी कि चाहे वह टीवी में न्यूज़ देख रहा हो या प्रिंट में न्यूज़ पढ़ रहा हो या फिर रेडियो में न्यूज़ सुन रहा हो, खेल समाचार आखिर में ही आते थे। उस समय डिजिटल नहीं था ना? और ना ही गूगल, कि फटाक से सर्च कर लो!
इन्हीं परेशानियों और सीमित संसाधनों की उपलब्धता के कारण मैं भी उस समय खेल की खबरें रेडियो में ही सुना करता था। और जैसा की रेडियो माध्यम में खबर प्रस्तुतीकरण पर आकाशवाणी का ही एकाधिकार है इसलिए पूरी निर्भरता आकाशवाणी पर ही थी।
अब उस दिन हुआ यूँ कि- आकाशवाणी समाचार के आखिर में भी खेल समाचार प्रस्तुत नहीं किया गया। मुझे बहुत गुस्सा आया। मुझसे शांत बैठा ही नहीं जा रहा था क्योंकि- रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु और चेन्नई सुपर किंग्स का मैच था और मेरी स्कोर जाने की दिलचस्पी। मैंने सोचा चलो! रेडियो का मीटर घुमाते हैं, कहीं ना कहीं तो कोई ना कोई खबर मिल ही जाएगी। लेकिन मुझे मीडियम वेव के मीटरों पर कोई खबर नहीं मिली। फिर दिमाग में खयाल आया क्यों ना रेडियो का बैंड बदलकर शार्ट वेव के मीटरों पर कोई खबर तलाशी जाए। मैंने बैंड बदला, मीटर पहले 25 पर गया फिर 31 पर और फिर 41 पर। 41 पर पहुंचते ही बुलंद आवाज के साथ एक वाक्य सुनाई देता है- "खेल समाचारों के साथ मैं हूँ, आदेश कुमार गुप्त।"
आवाज में क्या कुछ था मैं अगर विशेषण तलाश करने की कोशिश करूँ तो शायद ना कर पाऊँ। आप उस आवाज को माधुर्य से लबरेज कहें या बुलंद या फिर बेहतर से बेहतरीन और दिल को छू लेने वाली। जो कहना चाहें, कह सकते हैं।... तो मैंने उस दिन तो इस बेहतरीन आवाज को सुना ही, मुझे खेल समाचार में उस दिन जो चाहिए था वो तो मिल ही गया, लेकिन उसके अलावा मुझे एक ऐसी आवाज, और एक ऐसा रेडियो शो मिला जिसका मैं आज तक कायल हूँ।
उस दिन से लेकर आज तक मैं इस आवाज को लगातार सुनता आया था। मन ही मन सोचता था कैसे कोई इतना अच्छा बोल पाता है? कैसे किसी की आवाज दिल में घर कर जाती है? कैसे कुछ भी बिना देखे आपकी आंखों के सामने पूरा स्टेडियम, खेलते हुए खिलाड़ी और उनका उत्साह दिखाई दे जाता है? और कैसी है यह कला जो बिना विजुअल्स के लोगों के दिमाग में पूरा चित्र उतार देती है? कभी-कभी पापा से पूछता भी था, पापा! क्या कभी मैं यह जो आवाज सुन रहा हूँ, मैं जिनकी आवाज सुन रहा हूँ, क्या मैं उन्हें देख पाऊँगा? चूंकि मेरे पापा ने भी रेडियो न्यूज़ प्रेजेंटर के काल्पनिक चेहरे ही बनाए हैं। तो उन्होंने कहा- थोड़ा बड़े हो जाओ शायद किस्मत मिला दे। उन्होंने सांत्वना देने के अंदाज में कहा था इसलिए मैंने बहुत गंभीरता से लिया भी नहीं। जिस समय यह डिस्कशन चल रहा था उस समय मैं बहुत बड़ा था भी नहीं। शायद! दसवीं कक्षा में रहा होउंगा। इसलिए पापा के इस सेंटेंस को गंभीरता से लेने का सवाल भी नहीं उठता था।
समय बीतता गया। अध्ययन का सिलसिला भी बढ़ता गया। और फिर खुशकिस्मती यह थी कि ग्रेजुएशन के बाद मुझे देश के सबसे प्रतिष्ठित मीडिया अध्ययन संस्थान में पढ़ने का मौका मिला। चूंकि संस्थान को बताने का दस्तूर भी है, और आप लोगों में से भी कुछ में यह जिज्ञासा तो विकसित हो ही गई होगी कि- देश का सबसे बड़ा मीडिया अध्ययन संस्थान कौन सा है? तो चलिए बता देते हैं, संस्थान का नाम है- भारतीय जनसंचार संस्थान। इस संस्थान में एक साल का डिप्लोमा कोर्स चलाया जाता है। मैं इसी सत्र में इस अध्ययन संस्थान में अध्ययनरत हूँ। हम लोगों का दूसरा और आखरी सेमेस्टर चल रहा है, और हमारे कोर्स डायरेक्टर के द्वारा देश के सुप्रसिद्ध एवं विख्यात पत्रकारों को अपने अनुभव साझा करने के लिए हमारी क्लास में आमंत्रित किया जा रहा है।
चूंकि यह सिलसिला चल ही रहा है तो मेरे भी दिमाग में खयाल आया कि आदेश सर भी दिल्ली में ही कहीं ना कहीं रहते होंगे? जिस रात को यह सवाल मन में उठा था उसकी सुबह बीबीसी के एक पत्रकार 'अपूर्व कृष्ण सर' की क्लास थी। मैंने उनसे सहमें हुए अंदाज में पूछा- सर आपके संस्थान में आदेश कुमार गुप्ता नाम के एक खेल पत्रकार हैं, आप तो जानते ही होंगे? उन्होंने कहा- हाँ हाँ कहिए, मैं उनको जानता हूँ। मेरा बहुत फालतू सा सवाल था क्योंकि वह एक दूसरे के साथ ही तो काम करते थे, एक दूसरे को जानते क्यों नहीं! मैंने उनसे धीमे स्वर में डरते हुए कहा- सर उनका कोई संपर्क सूत्र मिल जाएगा क्या? अपूर्व कृष्णा सर ने आदेश सर के नंबर मुझे नोट करवा दिए।
उस दिन मैं बहुत खुश था। मैंने सोचा था बात करूंगा। इस पूरे सफर में मेरे साथ मेरे एक सहपाठी अतुल शाह भी थे। मैंने अतुल से कहा- यार क्यों ना आदेश सर को अपने संस्थान में पढ़ाने के लिए इनवाइट किया जाए? अतुल ने कहा- हाँ हाँ जरूर, बात करते हैं गोविंद सर से।( गोविंद सर भारतीय जनसंचार संस्थान के रेडियो एवं टेलीविजन पत्रकारिता विभाग के ( जिसका मैं छात्र हूं) कोर्स डायरेक्टर हैं)। फिर एक दिन अतुल ने गोविंद सर के सामने आदेश सर को बुलाने का मौखिक प्रस्ताव रख ही दिया। अगले दिन हमारा वीकली शेड्यूल निकला, जिसमें गुरुवार के दिन की दूसरी क्लास की जगह पर लिखा था- 'आदेश गुप्ता BBC'।
मन कितना प्रसन्न हुआ कहना मुश्किल था। मैंने समय से शेड्यूल चेक नहीं किया था इसलिए अतुल ने अलग से स्क्रीनशॉट लेकर मुझे भेज दिया था। मन की प्रसन्नता के गुब्बारे उड़ते जा रहे थे। इंतजार था मई की 12 तारीख के साढ़े ग्यारह बजे की क्लास का। आखिरकार इंतजार खत्म हुआ। आदेश सर निश्चित समय पर क्लास में आए। उन्होंने हम लोगों से सामान्य बातचीत की। मेरे मन में कुछ सवाल थे, एक पत्रकार की नजर से। लेकिन मैं उन्हें देखकर इतना भावुक हो गया कि सारे सवाल बिसर गए। मेरी भावनाएं ही बची थी उनसे कुछ कहने के लिए। अभी तक मैंने सुना था कि दो तरह के आंसू होते हैं। एक दुख के आंसू और दूसरे सुख के। हर किसी के जीवन में कभी ना कभी दुख तो आता ही है इसलिए दुख के आंसुओं से तो हर किसी का सामना हो ही जाता है, स्वाभाविक है, दुख के आंसुओं से तो मेरा भी सामना हुआ ही था। लेकिन मैंने सुख के आंसुओं को सिर्फ किताबों में पढ़ा था, लोगों के मुंह से सुना था जीवन में कभी महसूस करने का मौका नहीं आया। लेकिन आज जब मैं आदेश कुमार गुप्ता सर से रूबरू हो रहा था, उनसे अपने जज्बात बयां करने की कोशिश कर रहा था, तब मेरे शब्द आधे अधूरे से निकल रहे थे और आंसू धाराप्रवाह। सपने ऐसे भी साकार होते हैं, कुछ महापुरुषों की बायोग्राफी पढ़ते वक्त किसी संदर्भ में पढ़ा जरूर था, लेकिन वास्तव में साकार होते हैं ऐसा कभी सोच नहीं पाया था। इसके पीछे नादानी या ना -समझी थी या फिर अज्ञानता या छोटी उम्र। जो भी था पर मैंने जिंदगी को कम जाना था। आज जाना कि महापुरुषों की बायोग्राफी में लिखे सपनों का साकार होना एक हकीकत है, और दिल्ली से 900 किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश के सीधी जिले के एक युवक का सपना भी साकार हो सकता है। आज आदेश सर से मिलकर ऐसा लग रहा था मानो मेरी जिंदगी का एक मकसद पूरा हो गया हो।
आदेश सर अपना यह कीमती वक्त निकालकर, भारतीय जनसंचार संस्थान के रेडियो एवं टेलीविजन पत्रकारिता विभाग के छात्रों से अपने अनुभवों को साझा करने के लिए आपका हृदय की गहराइयों से धन्यवाद।🙏 और हम आपसे इतनी मोहब्बत करते हैं, इसलिए फोटो खिचाना तो हमारा अधिकार था। उसके लिए हम धन्यवाद नहीं बोलेंगे......।
- विमलेश कुमार।
Write a comment ...